Surah Al Hadid 57 | Hindi Translation | Text & Mp3 | सूरह अल-हदीद तर्जुमे के साथ | लिखा हुआ और सुन्ने के लिए | Hindi
बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम
सूरह अल-हदीद [57]
सूरह अल-हदीद के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मदनी है, इस में 29 आयतें हैं।
अल्लाह के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
﴾ 1 ﴿ अल्लाह की पवित्रता का गान करता है, जो भी आकाशों तथा धरती में है और वह प्रबल, गुणी है।
﴾ 2 ﴿ उसी का है आकाशों तथा धरती का राज्य। वह जीवन देता है तथा मारता है और वह जो चाहे, कर सकता है।
﴾ 3 ﴿ वही प्रथम, वही अन्तिम और प्रत्यक्ष तथा गुप्त है और वह प्रत्येक वस्तु का जानने वाला है।
﴾ 4 ﴿ उसीने उत्पन्न किया है आकाशों तथा धरती को छः दिनों में, फिर स्थित हो गया अर्श (सिंहासन) पर। वह जानता है उसे, जो प्रवेश करता है धरती में, जो निकलता है उससे, जो उतरता है आकाश से तथा चढ़ता है उसमें और वह तुम्हारे साथ[1] है जहाँ भी तुम रहो और अल्लाह जो कुछ तुम कर रहे हो, उसे देख रहा है।
1. अर्थात अपने सामर्थ्य तथा ज्ञान द्वारा। आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह सदा से है और सदा रहेगा। प्रत्येक चीज़ का अस्तित्व उस के अस्तित्व के पश्चात् है। वही नित्य है, विश्व की प्रत्येक वस्तु उस के होने को बता रही है फिर भी वह ऐसा गुप्त है कि दिखाई नहीं देता।
﴾ 5 ﴿ उसी का है आकाशों तथा धरती का राज्य और उसी की ओर फेरे जाते हैं सब मामले (निर्णय के लिए)।
﴾ 6 ﴿ वह प्रवेश करता है रात्रि को दिन में और प्रवेश करता है दिन को रात्रि में तथा वह सीनों के भेदों से पूर्णतः अवगत है।
﴾ 7 ﴿ तुम सभी ईमान लाओ अल्लाह तथा उसके रसूल पर और व्यय करो उसमें से जिसमें उसने अधिकार दिया है तुम्हें। तो जो लोग ईमान लायेंगे तुममें से तथा दान करेंगे, तो उन्हीं के लिए बड़ा प्रतिफल है।
﴾ 8 ﴿ और तुम्हें क्या हो गया है कि ईमान नहीं लाते अल्लाह पर, जबकि रसूल[1] तुम्हें पुकार रहा है, ताकि तुम ईमान लाओ अपने पालनहार पर, जबकि अल्लाह ले चुका है तुमसे वचन,[2] यदि तुम ईमान वाले हो।
1. अर्थात मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)। 2. (देखियेः सूरह आराफ़, आयतः 172)। इब्ने कसीर ने इस से अभिप्राय वह वचन लिया है जिस का वर्णन सूरह माइदा, आयतः 7 में है। जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के द्वारा सह़ाबा से लिया गया कि वह आप की बातें सुनेंगे तथा सुख-दुःख में अनुपालन करेंगे। और प्रिय और अप्रिय में सच बोलेंगे। तथा किसी की निन्दा से नहीं डरेंगे। (बुख़ारीः 7199, मुस्लिमः1709)
﴾ 9 ﴿ वही है, जो उतार रहा है अपने भक्त पर खुली आयतें, ताकि वह तुम्हें निकाले अंधेरों से प्रकाश की ओर तथा वास्तव में, अल्लाह तुम्हारे लिए अवश्य करुणामय, दयावान् है।
﴾ 10 ﴿ और क्या कारण है कि तुम व्यय नहीं करते अल्लाह की राह में, जबकि अल्लाह ही के लिए है आकाशों और धरती का उत्तराधिकार। नहीं बराबर हो सकते तुममें से वे जिन्होंने दान किया (मक्का) की विजय से पहले तथा धर्मयुध्द किया। वही लोग पद में अधिक ऊँचे हैं उनसे, जिन्होंने दान किया उसके पश्चात्[1] तथा धर्मयुध्द किया तथा प्रत्येक को अल्लाह ने वचन दिया है भलाई का तथा अल्लाह जो कुछ तुम करते हो, उससे पूर्णतः सूचित है।
1. ह़दीस में है कि कोई उह़ुद (पर्वत) के बराबर भी सोना दान करे तो मेरे सह़ाबा के चौथाई अथवा आधा किलो के बराबर भी नहीं होगा। (सह़ीह़ बुख़ारीः 3673, सह़ीह़ मुस्लिमः 2541)
﴾ 11 ﴿ कौन है, जो ऋण दे अल्लाह को अच्छा ऋण? जिसे वह दुगुना कर दे उसके लिए और उसी के लिए अच्छा प्रतिदान है।
1. ऋण से अभिप्राय अल्लाह की राह में धन दान करना है।
﴾ 12 ﴿ जिस दिन तुम देखोगे ईमान वालों तथा ईमान वालियों को कि दौड़ रहा[1] होगा उनका प्रकाश उनके आगे तथा उनके दायें। तुम्हें शुभ सूचना है ऐसे स्वर्गों की, बहती हैं जिनमें नहरें, जिनमें तुम सदावासी होगे, वही बड़ी सफलता है।
1. यह प्रलय के दिन होगा जब वह अपने ईमान के प्रकाश में स्वर्ग तक पहुँचेंगे।
﴾ 13 ﴿ जिस दिन कहेंगे मुनाफ़िक़ पुरुष तथा मुनाफ़िक़ स्त्रियाँ उनसे, जो ईमान लाये कि हमारी प्रतीक्षा करो, हम प्राप्त कर लें तुम्हारे प्रकाश में से कुछ। उनसे कहा जायेगाः तुम पीछे वापस जाओ और प्रकाश की खोज करो।[1] फिर बना दी जायेगी उनके बीच एक दीवार, जिसमें एक द्वार होगा। उसके भीतर दया होगी तथा उसके बाहर यातना होगी।
1. अर्थात संसार में जा कर ईमान तथा सदाचार के प्रकाश की खोज करो किन्तु यह असंभव होगा।
﴾ 14 ﴿ वे उन्हें पुकारेंगेः क्या हम (संसार में) तुम्हारे साथ नहीं थे? (वे कहेंगेः) परन्तु तुमने उपद्रव में डाल दिया अपने आपको और प्रतीक्षा[1] में रहे तथा संदेह किया और धोखे में रखा तुम्हें तुम्हारी कामनाओं ने। यहाँ तक कि आ पहुँचा अल्लाह का आदेश और धोखे ही में रखा तुम्हें बड़े वंचक (शैतान) ने।
1. कि मुसलमानों पर कोई आपदा आये।
﴾ 15 ﴿ तो आज तुमसे कोई अर्थदण्ड नहीं लिया जायेगा और न काफ़िरों से। तुम्हारा आवास नरक है, वही तुम्हारे योग्य है और वह बुरा निवास है।
﴾ 16 ﴿ क्या समय नहीं आया ईमान वालों के लिए कि झुक जायें उनके दिल अल्लाह के स्मरण (याद) के लिए तथा जो उतरा है सत्य और न हो जायें उनके समान, जिन्हें प्रदान की गयीं पुस्तकें इससे पूर्व, फिर लम्बी अवधि व्यतीत हो गयी उनपर, तो कठोर हो गये उनके दिल[1] तथा उनमें अधिक्तर अवज्ञाकारी हैं।
1. (देखियेः सूरह माइदा, आयतः13)
﴾ 17 ﴿ जान लो कि अल्लाह ही जीवित करता है धरती को, उसके मरण के पश्चात्, हमने उजागर कर दी हैं तुम्हारे लिए निशानियाँ, ताकि तुम समझो।
﴾ 18 ﴿ वस्तुतः, दान करने वाले पुरुष तथा दान करने वाली स्त्रियाँ तथा जिन्होंने ऋण दिया है अल्लाह को अच्छा ऋण,[1] उसे बढ़ाया जायेगा उनके लिए और उन्हीं के लिए अच्छा प्रतिदान है।
1. ह़दीस में है कि जो पवित्र कमाई से एक खजूर के बराबर भी दान करता है तो अल्लाह उसे पोसता है जैसे कोई घोड़े के बच्चे को पोसता है यहाँ तक कि पर्वत के समान हो जाता है। (सह़ीह़ बुख़ारीः 1014)
﴾ 19 ﴿ तथा जो ईमान लाये अल्लाह और उसके रसूलों[1] पर, वही सिद्दीक़ तथा शहीद[2] हैं अपने पालनहार के समीप। उन्हीं के लिए उनका प्रतिफल तथा उनकी दिव्या ज्योति है और जो काफ़िर हो गये और झ़ठलाया हमारी आयतों को, तो वही नारकीय हैं।
1. अर्थात बिना अन्तर और भेद-भाव किये सभी रसूलों पर ईमान लाये। 2. सिद्दीक़ का अर्थ हैः बड़ा सच्चा। और शहीद का अर्थ गवाह है। (देखियेः सूरह बक़रह, आयतः 143, और सूरह ह़ज्ज, आयतः 78)। शहीद का अर्थ अल्लाह की राह में मारा गया व्यक्ति भी है।
﴾ 20 ﴿ जान लो कि सांसारिक जीवन एक खेल, मनोरंजन, शोभा,[1] आपस में गर्व तथा एक-दूसरे से बढ़ जाने का प्रयास है, धनों तथा संतान में। उस वर्षा के समान भा गयी किसानों को जिसकी उपज, फिर वह पक गयी, तो तुम उसे देखने लगे पीली, फिर वह हो जाती है चूर-चूर और परलोक में कड़ी यातना है तथा अल्लाह की क्षमा और प्रसन्नता है और सांसारिक जीवन तो बस धोखे का संसाधन है।
1. इस में संसारिक जीवन की शोभा की उपमा वर्षा की उपज की शोभा से दी गई है। जो कुछ ही दिन रहती है फिर चूर-चूर हो जाती है।
﴾ 21 ﴿ एक-दूसरे से आगे बढ़ो अपने पालनहार की क्षमा तथा उस स्वर्ग की ओर, जिसका विस्तार आकाश तथा धरती के विस्तार के[1] समान है। जो तैयार की गयी है उनके लिए, जो ईमान लायें अल्लाह और उसके रसूलों पर। ये अल्लाह का अनुग्रह है, वह प्रदान करता है उसे, जिसे चाहता है और अल्लाह बड़ा उदार (दयाशील) है।
1. (देखियेः सूरह आले इमरान, आयतः 133)
﴾ 22 ﴿ नहीं पहुँचती कोई आपदा धरती में और न तुम्हारे प्राणों में, परन्तु वह एक पुस्तक में लिखी है, इससे पूर्व की हम उसे उत्पन्न करें[1] और ये अल्लाह के लिए अति सरल है।
1. अर्थात इस विश्व और मनुष्य के अस्तित्व से पूर्व ही अल्लाह ने अपने ज्ञान अनुसार ‘लौह़े मह़फ़ूज़’ (सुरक्षित पुस्तक) में लिख रखा है। ह़दीस में है कि अल्लाह ने पूरी उत्पत्ति का भाग्य आकाशों तथा धरती की रचना से पचास हज़ार वर्ष पहले लिख दिया। जब कि उस का अर्श पानी पर था। (सह़ीह़ मुस्लिमः 2653)
﴾ 23 ﴿ ताकि तुम शोक न करो उसपर, जो तुमसे खो जाये और न इतराओ उसपर, जो तुम्हें प्रदान किया है और अल्लाह प्रेम नहीं करता किसी इतरान, गर्व करने वाले से।
﴾ 24 ﴿ जो कंजूसी करते हैं और आदेश देते हैं लोगों को कंजूसी करने का तथा जो विमुख होगा, तो निश्चय अल्लाह निस्पृह, सराहनीय है।
﴾ 25 ﴿ निःसंदेह, हमने भेजा है अपने रसूलों को खुले प्रमाणों के साथ तथा उतारी है उनके साथ पुस्तक तथा तुला (न्याय का नियम), ताकि लोग स्थित रहें न्याय पर तथा हमने उतारा लोहा जिसमें बड़ा बल[1] है तथा लोगों के लिए बहुत-से लाभ और ताकि अल्लाह जान ले कि कौन उसकी सहायता करता है तथा उसके रसूलों की, बिना देखे। वस्तुतः, अल्लाह अति शक्तिशाली, प्रभावशाली है।
1. उस से अस्त्र-शस्त्र बनाये जाते हैं।
﴾ 26 ﴿ हमने (रसूल बनाकर) भेजा नूह़ को तथा इब्राहीम को और रख दी उनकी संतति में नबुवत (दुतत्व) तथा पुस्तक। तो उनमें से कुछ ने मार्गदर्शन अपनाया और उनमें से बहुत-से अवज्ञाकारी हैं।
﴾ 27 ﴿ फिर हमने, निरन्तर उनके पश्चात् अपने रसूल भेजे और उनके पश्चात् भेजा मर्यम के पुत्र ईसा को तथा प्रदान की उसे इन्जील और कर दिया उसका अनुसरण करने वालों के दिलों में करुणा तथा दया और संसार[1] त्याग को उन्होंने स्वयं बना लिया, हमने नहीं अनिवार्य किया उसे उनके ऊपर। परन्तु अल्लाह की प्रसन्नता के लिए (उन्होंने ऐसा किया), तो उन्होंने नहीं किया उसका पूर्ण पालन। फिर (भी) हमने प्रदान किया उन्हें जो ईमान लाये उनमें से उनका बदला और उनमें से अधिक्तर अवज्ञाकारी हैं।
1. संसार त्याग अर्थात सन्यास के विषय में यह बताया गया है कि अल्लाह ने उन्हें इस का आदेश नहीं दिया। उन्होंने अल्लाह की प्रसन्नता के लिये स्वयं इसे अपने ऊपर अनिवार्य कर लिया। फिर भी इसे निभा नहीं सके। इस में यह संकेत है कि योग तथा सन्यास का धर्म में कभी कोई आदेश नहीं दिया गया है। इस्लाम में भी शरीअत के स्थान पर तरीक़त बना कर नई बातें बनाई गईं। और सत्धर्म का रूप बदल दिया गया। ह़दीस में है कि कोई हमारे धर्म में नई बात निकाले जो उस में नहीं है तो वह मान्य नहीं। (सह़ीह़ बुख़ारीः 2697, सह़ीह़ मुस्लिमः 1718)
﴾ 28 ﴿ हे लोगो जो ईमान लाये हो! अल्लाह से डरो और ईमान लाओ उसके रसूल पर, वह तुम्हें प्रदान करेगा दोहारा[1] प्रतिफल अपनी दया से तथा प्रदान करेगा तुम्हें ऐसा प्रकाश, जिसके साथ तुम चलोगे तथा क्षमा कर देगा तुम्हें और अल्लाह अति क्षमी, दयावान् है।
1. ह़दीस में है कि तीन व्यक्ति ऐसे हैं जिनको दोहरा प्रतिफल मिलेगा। इन में एक अह्ले किताब में से वह वयक्ति है जो अपने नबी पर ईमान लाया था फिर मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर भी ईमान लाया। (सह़ीह़ बुख़ारीः97, 2544, सह़ीह़ मुस्लिमः 154)
﴾ 29 ﴿ ताकि ज्ञान हो जाये इन बातों से अह्ले[1] किताब को कि वह कुछ शक्ति नहीं रखते अल्लाह के अनुग्रह पर और ये कि अनुग्रह अल्लाह ही के हाथ में है। वह प्रदान करता है, जिसे चाहे और अल्लाह बड़े अनुग्रह वाला है।
1. अह्ले किताब से अभिप्राय यहूदी तथा ईसाई हैं।
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