नमाज़ में तशहुद के बाद (अत्तहियात और दुरुद ए इब्राहिम के बाद) पढ़े जाने वाली दुआ
اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ عَذَابِ الْقَبْرِ، وَمِنْ عَذَابِ جَهَنَّمَ ، وَمِنْ فِتْنَةِ الْمَحْيَا وَالْمَمَاتِ، وَمِنْ فِتْنَةِ الْمَسِيحِ الدَّجَّالِ
” Allahumma, inni Aauzubika min fitnatil-Qabri, Wa min Azabi Jahannam,Wa min fitnatil-mahya wal-mamati, wa min Fitnatil Maseeh Ad Dajjal. “
Ya Allah main teri panaah maangta hu , Qabr ke azab se , Jahannum ke azab se, Maut aur zindagi ke Fitno se aur Maseeh Dajjal ke fitno se … (Ameen)
O Allah, I seek refuge in You from the punishment of the grave, from the punishment of Hell, from the trials of death and life and from the trials of Masih Dajjal.
۞ हदीस: रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया “जब तुम में से कोई आखिरी तशहुद को पढ़ ले तो अल्लाह सुब्हानहु से चार चीज़ों से पनाह मांगे! दोज़ख़ के अज़ब से, क़ब्र के अज़ब से, ज़िंदगी और मौत के फ़ितनो से और मसीहा दज्जल के फ़ितनो से।''
📕सुनन इब्न माजा, जिल्द 1, 909-साहिह
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